पुस्तक: हिमाचल प्रदेश के घटना और श्रमप्रधान गीत (1986)
सम्पादक: मौलू राम ठाकुर, बंशी राम शर्मा, रमेश जसरोटिया
प्रकाशक: हिमाचल कला, संस्कृति और भाषा अकादमी, शिमला

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घेशू लोभीया

यह गीत एक दुखद घटना पर आधारित है। कुल्लू के कुछ लोग पुरुष, स्त्री चंबा में जंगलात के ठेकेदार के साथ काम पर गए थे। उनमें घेशू और उनकी पत्नी भी थी। सुंदर नाम का एक युवक घेशू की पत्नी पर आशिक हो गया। वह घेशू को शराब पीने के बहाने गांव में ले गया और वहां उसे मार दिया। परन्तु घेशू की पत्नी उस के हाथ न आई। वह किसी तरह वहां से भाग कर घर पहुंची। उसी ने पति के दुःख में यह गाना गाया जो लोकगीत बना:―

घेशू लोभीया, ज़ान धीनी ज़ौऊआ रे खूड़ा
लोभा रा न्होठा थी बोणा कोमा बे, घौरे आपणा छ़ूड़ा

झ़ूरी लोभ रोह् सौदा बे, माण्हू री काया रा धूड़ा
देशा छ़ौड़िया प्रदेशा बे ज़ाणा, कुणी रा खौडु़आ बूरा

मारदा मौत ड़े पापी सुंदरा, घौरा छु़टी बुढळी आमा
घौर छु़टू त्राई भूईंरा, होर छु़टू बूढळू मामा

होछे़ छु़टे बालक मेरे, बाबू छु़टू मारदा हाका
कुणी रा खौडु़आ पापी सुंदरा, देईरा नी थी कौसी बे धाका

मारदा मौत ड़े पापी सुंदरा, हौथा रे कांगणू देनू
देऊआ बे देनू बौकरू, देवी बे सनागणू देनू

मारदा मौत ड़े पापी सुंदरा, लोका रे देशे
कुण धाचला आमा बापू बे कुण जाला तिन्हारी गेशे

हिन्दी अनुवाद

हे घेशू प्रेमी, जान दी (तूने) जौ के खुड़ में (घास और पशु रखने के कमरे में)
खुशी का गया था तू जंगल के काम, घर में तेरे काफ़ी था (कमी न थी)।

प्रेम-प्यार जीवित रहा है हमेशा के लिये मनुष्य के शरीर की धूलि बन गई
देश छोड़ प्रदेश गया, किस का बुरा (काम) खड़ा हो गया

मारना मत हे पापी सुंदर, घर में छूट (रह) गई बूढ़ी मां
घर छूट गया तीन मंजिल का, और छूटा बूढ़ा मामा

छोटे छूट गये बालक मेरे, बाप रह गया मारता आवाजें
किस का पाप खड़ा हुआ (कारण बना), दिया नहीं था किसी को घक्का (भी)

मारना मत हे पापी सुंदर, हाथ के कंगन दे दूं
देवता को दूंगी बकरा, देवी को सोने का कंगन दूं

मारना मत है पापी सुंदर, लोगों के देश में
कौन पालेगा मां बाप को, कौन जाएगा उन की देख भाल के लिए

संग्रहण व अनुवाद: बलदेव ठाकुर


फूला देई बाह्मणीए

भोंतर (भुंतर) में मेला लगा था। लोग पी कर मस्त थे। विश्राम गृह में मंत्री महोदय पधारे थे। तभी एक सरकारी अधिकारी को बाहर अपनी पुरानी प्रेमिका फूला देवी के दर्शन हुए। लड़की “राउगी नाला” गाँव में विवाहित स्त्री थी। उसकी गोद में एक वर्ष का बच्चा था। अधिकारी ने फूला देवी को बच्चे समेत जीप में डाला और जीप दौड़ा कर उसे ले भागा। साथ कुछ और मुस्टंडे हो लिए। अभी जीप बहुत दूर न गई थी कि एक खड्ड में गिर गई। सभी सुरक्षित थे केवल फूला देवी दुर्घटना का शिकार हुई।

फुला देई बाह्मणीए, ठांडे कमरे
ठारा पीई बोतला, ठांडे कमरे

ढेके रे बाले तू सुती नींदरे
आपू रौही सुतिया, छ़ौली खाई बांदरे

सोंझ़ा ढीसी थी लोगड़े, दोथी शांदरे
जाच लागी थी भूइण, बाबू च़ंदरे

राउगी नाले री बाह्मणीए, पाई जीपा आंदरे
तू बी बेठी थी बाह्यणीए, जीपा आंदरे

सड़का शोटिया बाह्मणीए, जीप नाळा ज़ोंदरे
आपू पुजी तू नाळा न, शोहरू झ़ीफा ज़ोंदरे

लाश पुजी तेरी बाह्मणीए, ठाणा हांदरे
सोढ़ खाई थी बाबूए, नेगी लोम्बरे

हिन्दी अनुवाद

फुला देई मेरी ब्राह्मणीए, ठण्डे कमरे में
अठारह पी ली थी बोतलें (शराब की) ठण्डे कमरे में

खेत के किनारे सोई तू गहरी नींद में
आप तो सोई रही, मक्‍की खाई बंदरों ने

शाम को मारा था तझे डण्डे से प्रात: लकड़ी विशेष से
मेला लगा था भुंतर में, बाबू चंदरे ने

राउगी नाले की ब्राह्मणी डाल दी जीप के भीतर
तू भी बैठी थी ब्राह्मणी जीप के अंदर

सड़क छोड़ के हे ब्राह्मणी, जीप गिरी नाले में
खुद तो तू नाले में पहुंची, बच्चा झाड़ी में फंस गया

लाश पहुंची तेरी थाने के अन्दर,
रिश्वत खाई बाबू ने, जैलदार और लम्बरदार ने

संग्रहण व अनुवाद: बलदेव ठाकुर


भियाणीए

भियाणी नाम का एक लोक गीत बहुत प्राचीन समय से चला आ रहा है। असल घटना क्‍या रही होगी अब यह मालूम नहीं है परन्तु घटना बड़ी दुखद रही होगी यह गीत के शब्दों से स्पष्ट है। गीत की करुणा भरी शब्दावली देखने योग्य है।

हांइये भियाणीए, कोने कीए काहणी शूणी
याणी बाली बे हुई मौता, चीड़ी डाळा री रूणी

छ़ाती लागा भौळका, मना री बुझ़णी कूणी
नाळा धारा भौफटे नेंदीए, ज़ोते री बागरे पूणी

झ़ुमण भौरिया केरू हुंडणा, नाई थी रांबड़ी ज़ाणी
ज़ैबे लागी तेरी सोठणी, छ़ाती लाई कुटणी धाणी

खीर गंगा रा ज़ायरू, नीला ब्यासा रा पाणी
फूला सेही थी होळकी, गोळा थी बिन्हीया लाणी

याद लागी एंदी झ़ुपकू, कुणी बुद्धिए रहाणी
हौछू नीभे बौहिया, हेरिदी हौछिए काणी

तू न्होठी मौरिया, याद सा बिसरी आणी
हाड़ शुके पिंडे रे, लोहू रा निरशा पाणी

कुणी बुझ़णा सेंइसा मेरा, गौळा लागा हेरिदा पाणी
भियाणी सियाणुई, गीत रौही याणी री याणी

हिन्दी अनुवाद

अरी भियाणी, कानों ने यह क्या कथनी सुन ली
नौजवान की मौत हुई, चिड़िया शाखा पर रो दी है

छाती लगी है जलने, मन की (बात) समझेगा कौन
नाले धारों में तड़फते रहे, जोत की वायु ने तरसा दिया

परदा डालकर किया था चलना, नहीं था अच्छी तरह पहचाना
जब लगी थी तेरी याद, छाती पर लगे कूटने धान

खीर गंगा का चश्मा, नीला ब्यास का पानी
फूल की तरह थी हल्की, गले में (हार की तरह) पिरो कर लगा दूं

याद लगी है आने भपक कर, किस बुद्धि से भुला दूं
आंसू बह कर खत्म हुए, देखते हुए भी अन्धे हो गये हैं

तू गई है मर, याद नहीं भूलने में आ रही
हड्डियां सूख गयीं शरीर की, लहू का (बन गया) साफ पानी

कौन समझे संशय मेरा, गले में पानी नजर आ रहा है
भियाणी (की याद) बूढ़ी हो गयी, गीत रहा अभी जवान का जवान

संग्रहण व अनुवाद: बलदेव ठाकुर


चिड़ूआ

यह प्रणय गीत है। प्राय: स्त्रियां और पुरुष इसे साथ साथ गाते हैं। गाते हुए स्त्रियां चिड़ूआ (हे पक्षी) का सम्बोधन करती हैं और पुरुष चिड़ीए (हे चिड़िया) कह कर गाते हैं।

पुरुष – छ़ौड़ी देणी गराहुंज़ी चिड़ीए, च़ौल उथड़ी धारा
च़ौल उथड़ी घारा चिड़ीए, च़ौल उथड़ी धारा

स्त्री – मन लागला दूहीरा चिड़ूआ, च़ौल उथड़ी धारा
च़ौल उथड़ी धारा चिड़ूआ, च़ौल उथड़ी धारा

देश नी रौहू ज़ीणे-बे चिड़ीए, बोणा रौहणा खारा
ज़ोता ज़ोता न हुंडणा चिड़ूआ, बाल्हा हुंडणा फारा
बाल्हा हुंडणा फारा चिड़ूआ

छ़ौड़ी देणा ए साथरा चिड़ीए, भियाणू निकता तारा
नाई छ़ुटदा साथरा चिड़ूआ, सोंग सदका म्हारा
सोंग सदका म्हारा चिड़ूआ

पाखले आटो पाहुणे चिड़ीए घौर भौरुआ सारा
घौर भौरुआ पाहुणे चिड़ूआ, कौखे जांईडू म्हारा
कौखे जांईडू म्हारा चिड़ूआ

ज़ोंघे हुंडणा शोभली चिड़ीए, देश भाळना सारा
चिड़ू उड़ू, मेरा धाउड़े लोभा न, सारा मुल्ख निहारा
सारा मुल्ख निहारा चिड़ूआ

लोभा-शोभा-बे साउग चिड़ीए, नाळा तोपली धारा
छ़ेके मिलड़े मने रे चिड़ूआ, गौळा शोभिली हारा
गौळे शोभिली हारा चिड़ूआ

कौ न्होठा दूरा देश बे चिड़ूआ, पाणी ओकती आळा
कौकड़ी मेरी लड़फड़ाउई, कालज़े लाई छ़ाला
कालज़े लाई छ़ाला चिड़ूआ

देऊआ रा सा मोहरु चिड़ीए, तेरा मूंहड़ू काळा
कौधी बोणना ए तौ बी चिड़ीए, मेरे गौळा री माळा
मेरे गौळा री माळा चिड़ीए

तेरी मेरी ए जोड़ी की लोभीया, घुंडी-मुंडी रा ढाळा
तेरे एई लोभा रा चिड़ीए, बिणी सुरे मताळा
बिणी सुरे मताळा चिड़ीए

चिड़ूरा लेणा ज़लभ लोभीया, दुही रौहणा डाळा
रौई तोसा रे डाळा चिड़ूआ, रौई तोसा रे डाळा

हिन्दी अनुवाद

पुरुष – छोड़ देनी ग्राम-वादी हे चिड़िया, चल ऊंचे पर्वत पर
चल ऊंचे पर्वत पर चिड़िया, चल ऊंचे पर्वत पर

स्‍त्री – मन लगेगा दोनों का हे पक्षी, चल ऊंचे पर्वत पर
चल ऊंचे पर्वत पर पक्षी, चल ऊंचे पर्वत पर

देश नहीं रहा जीने के (काबिल) हे चिड़िया, वन में रहना अच्छा है
पर्वत पर्वत पर चलेंगे पक्षी, मैदान का चलना अधिक (कठिन) होता है
मैदान का चलना

छोड़ देना यह बिस्तर चिड़िया, भोर का निकला है तारा
नहीं छूटता बिस्तर पक्षी, संग हमेशा का है हमारा
संग हमेशा का

अजनबी आये महमान चिड़िया, घर भर गया सारा
घर भर गया महमान से पक्षी, कहां है प्रियतम हमारा
कहां है जांईडू (एक पक्षी है जो प्रियतम का प्रतीक है)

पैर से चलना अच्छा है चिड़िया, देश देखना है सारा
पक्षी उड़ा मेरे अधूरे प्रेम में, सारा देश अंधेरा (हो गया है)
सारा देश अंधेरा

प्यार और शोभा के लिये साथ (जरूरी है) चिड़िया, नाले ढूंढेगी धार में
शीघ्र मिल अरे मन के पक्षी, गले में सजेगी हार
गले में सजेगी

कहां गया दूर देश को पक्षी, पानी जहर वाला (है वहां)
हृदय मेरा तड़फ रहा है, कलेजा मार रहा छलांगे
कलेजा मार रहा है छलांगे

देवता की मूर्ति सा है चिड़िया, तेरा मुख श्याम (काला)
कब बनेगी तू भी चिड़िया मेरे गले की माला
मेरे गले की माला

तेरी मेरी यह जोड़ी प्रिय, सिर से पैर तक बराबर है
तेरे इस प्रेम में चिड़िया (मैं) बिना शराब के मतवाला हूं
बिना शराब

पक्षी का लेंगे (हम) जन्म प्रिय, दोनों रहेंगे शाखा पर
रई तोस (वृक्ष विशेष) की शाखा पर, रई तोस की शाखा पर

संग्रहण व अनुवाद: बलदेव ठाकुर


ओबूआ…. औज़ रूहणी म्हारे

यह श्रम गीत है। जेठ-आषाढ़ में जब खेतों में धान रोपे जाते हैं तो घुटनों तक खेतों में पानी होता है। धान की पौध एक छोटी क्यारी से उखाड़ कर बड़े-बड़े खेतों में पुन: रोपी जाती है। रोपने के श्रम-प्रधान काम की थकावट को गीत गा-गा कर दूर किया जाता है। ओबू और ओबी किसी पुराने जमाने में प्रेमी-प्रेमिका हुए हैं, जिनका प्यार इसी परिवेश में पनपा था और अब उनके प्यार की याद लोकगीत में ताज़ा है। धान रोपने के कार्य को ‛रूहणी’ कहते हैं। रूहणी खेत के एक किनारे से आरम्भ होती है और दूसरे किनारे गाने के साथ समाप्त होती है। 

छ़ाकी सेरी (नगर, उझी घाटी) में रुहणी का दृश्य
चित्र: हरि कृष्ण गोरखा, 1954-59
स्त्रियां – हांड़े ओबूआ
पुरुष – ओबे हो

स्त्रियां – छेता लागी औज़ रूहणी म्हारे
पुरुष – रूहणी म्हारे, रूहणी म्हारे

स्त्रियां – हाईंए ओबीए
पुरुष – ओबे हो

स्त्री – तू बी लोड़ी आई म्हारे ज़ुआरे
म्हारे ज़ुआरे, म्हारे ज़ुआरे

हांड़े ओबूआ… ओबे हो
ल्हानी ता लागी, हौछी रे शारे
नाईं जाणदा हौछी रे शारे

हाईंए ओबीए… ओबे हो
सोंझ़ा लोड़ी आई पाहुणी म्हारे
शोभली झ़ूरी, पाहुणे म्हारे

हांड़े ओबूआ… ओबे हो
औज़ लोभी भाळदे डूबे दिहाड़े
ज़ेठा-शाढ़ा रे, लोमे दिहाड़े

हाईंए ओबीए... ओबे हो
इन्हा छेता पौज़ले, गौरी च़ुहारे
खीसे भौरी आणी, गौरी च़ुहारे

हांड़े ओबूआ... ओबे हो
मेली लोड़ी तू होरी तुआरे
औज़ के बिछ़ड़, होरी तुआरे

हाईंए ओबीए... ओबे हो
छेता निभी एबे, रूहणी सारे
छेता रे पूजे, दूजे कनारे

स्त्री – हांड़े ओबूआ
पु० – हाईंए ओबीए

घौरा पुजणा, कुणी नुहारे
पुजणा होला, कुणी नुहारे

हिन्दी अनुवाद

स्त्री – अरे ओबू
पुरूष – ओबे हो

स्त्री – खेतों में लगी आज रूहणी (धान रोपाई) हमारे
पु० – रूहणी हमारे, रूहणी हमारे

स्त्री – अरी ओबी
पु० – ओबे हो

स्त्री – तू भी आ जाना, हमारे ज़ुआरे (सांझे काम पर)
हमारे ज़ुआरे (सहायता के लिए बुलाए लोगों द्वारा काम), हमारे ज़ुआरे

अरे ओबू… ओबे हो
नाज़ुक आंखों के इशारे लगे हैं
(तू) नहीं जानता, आंखो के इशारे

अरी ओबी, ओबे हो
शाम को चाहिए आई, मेहमान हमारे
सुंदर प्रेमिका, मेहमान हमारे

अरे ओबू, ओबे हो
प्रेमी को देखते आज, डूब गया दिन
जेठ-आषाढ़ के लम्बे दिन (बीत गए)

अरे ओबू, ओबे हो
इन खेतों में उपजेंगे, गरी और छुहारे
जेब में भर के लाना, गरी और छुहारे

अरे ओबू… ओबे हो
मिल लेना तुम, अगले इतवार को
आज के बिछुड़ कर, अगले इतवार को

अरी ओबी… ओबे हो
खेतों में समाप्त हुई अब, रूहणी सारे (खेतों में)
खेतों के पहुंचे, दूसरे किनारे पर

स्त्री – अरे ओबू
पु० – अरी ओबी

घर पहुंचेंगे, किस शकल में
पहुंचेंगे, किस शकल में

संग्रहण व अनुवाद: बलदेव ठाकुर


हेसरू बोला.… हे सार

यह गीत बड़े बड़े लट्ठों, शहतीरों, पत्थरों को घसीटते हुए गाया जाता है। शहतीर में लंबे रस्से बांधे जाते हैं। रस्सों के दोनों ओर लोग खड़े होते हैं। एक आदमी गीत के टप्पे बोलता है, शेष सभी केवल ‛हे सार’ कहते हैं और उसके साथ रस्सा खींचते हैं। टप्पे बोलने वाला व्यक्ति बड़ा चतुर, कुशल, योग्य कवि और गायक होना चाहिए, क्योंकि वह गीत में मनोरंजकता लाता है। एक पंक्ति को कई खण्डों में बांटता है, हर खण्ड को अनेक बार बोलता है, हर बार लोग ‛हे सार’ कहते हैं और शहतीर को खींचते हैं। हर खण्ड के शब्द के बाद यह आकांक्षा रहती है कि वह क्या बोलने वाला है, जैसे―तेरे खेतों में… हे सार, तेरे खेतों में… हे सार, आज की रात… हे सार, आज की रात… हे सार, हम मिलेंगे… हे सार, हम मिलेंगे… हे सार, निपट अकेले… हे सार। कई बार वह अश्लील भी बोलता है, परन्तु अवसर को देखकर। ‛हे सार’ का कोई अर्थ नहीं है। संभवतः यह शब्द आरम्भ में ‛हे ईश्वर’ था। बाद में ‛हे सार’ बना। लोग भारी काम करते हुए ईश्वर से उस की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते थे।

हेसरू बोला... हे सार
रौई रा दार… हे सार
ज़ोर नी लांदा... हे सार
देउआ री कार… हे सार
बुटड़ी पांधे… हे सार
बेठा घुघता… हे सार
पाहणी ढौकिया… हे सार
मसै उकता… हे सार
रौई रा भांडा, घशीटणा पोऊ, बार-बार... हे सार
तू थोकू ता, डिगणे दे, हाऊं तैयार... हे सार
ज़ोर खोंज़ा ड़े, लांगणी पोई, उथड़ी धार... हे सार
तगड़े बोणा, भोनी नी लोड़ी, आपणी ठार... हे सार
बेशदे मौता, छ़ोकरे यारो, कोम कमोणा
रात-दिहाड़... हेसरू यारा, हे सार
छ़िड़ी फुकिया, भौसा री ढेरी, पिंडे फुकिया
औगी री छ़ार… हेसरू बोला, हे सार
केळू री बूटी, एथ की उठी, एकी घशीटदे
शौऊ हज़ार... हेसरू बोला, हे सार
शाढ़ू भाई, एह पझाई, डौरदे मौता
न्हौठी दिहाड़... हेसरू बोला, हे सार
बोडे-बोडे रे, तोंतण ढिलुए, ढेलीदे लागे
छोकरे यार... हेसरू यारा, हे सार
हेसी करिंडा, लौढ़ खाऊ मिंडा, भांदल सूर
काउणी भार, हेसरू बोला, हे सार
रज़ पीई ड़े, तेरे धीरा-न, सुरा री शुंघा, एकी रे लागे, हेरिदे चार
हेसरू यारा... हे सार

हिन्दी अनुवाद

हेसरू बोलो… हे सार
रई (वृक्ष विशेष) की शहतीर है... हे सार
ज़ोर नहीं लगाते (तुम)... हे सार
देवते की द्रोही हैं (ज़ोर लगाओ)... हे सार
वृक्ष पर... हे सार
बैठा कबूतर… हे सार
शाखा पकड़ कर... हे सार
मुश्किल से चढ़ा... हे सार
रई का खम्बा है, घसीटना पड़ेगा, बार-बार... हे सार
तू थक गया तो, रहने दे, मैं तैयार हूँ ... हे सार
ज़ोर निकालो, पार करनी पड़ेगी, ऊंची धार... हे सार
तगड़े बनो, तोड़ मत देना, अपनी ठार (घुटने के नीचे का भाग)... हे सार
बैठो मत, अरे छोकरों, काम कमाओ
रात दिन... हेसरू यार, हे सार
लकड़ी जला कर, भस्म की ढेरी, शरीर जला कर
आग की क्षार... हेसरू बोलो, हे सार
दियार का वृक्ष, यह क्या हुआ, एक को घसीटने हैं
सौ हज़ार… हेसरू बोलो, हे सार
हे शाढ़ू भाई, अभी पहुँचा दी, डरो मत
बीत गया दिन… हेसरू बोलो… हे सार
बड़ों-बड़ों के यतन ढीले पड़ गए, मुकाबला हो रहा है
(अब) छोकरों का… हेसरू यारा, हे सार
हेसी (जो ढोल बजाता है), कारिंदा, भेड़ा खाया मेढ़ा,
(पूरा) घड़ा सुरा का (पी लिया), कंगनी (चावल) का (पूरा) भार
(खा लिया) हेसरू बोलो, हे सार
काफी पी ली तेरे घर में, सूरा की घूंटें
एक के लगे हैं दिखने चार… हेसरू यारो, हे सार।

संग्रहण व अनुवाद: बलदेव ठाकुर


लाम्बू लोहरा

पिछले गीत ‛हेसरू बोला हे सार’ में आदमी जल्दी ही थक जाते हैं। कारण यह है कि ‛हे सार’ शब्द शीघ्र-शीघ्र आता है और लोगों को शहतीर जल्दी-जल्दी खींचना पड़ता है। पिछले गीत की पंक्तियों में जहां-जहां अर्ध-विराम है वहां ‛हे सार’ शब्द कहा जाएगा और खींचा जाएगा। लिखते हुए स्थान को कम करने के लिए ऐसा नहीं दिखाया गया है परन्तु थकने पर बैठ कर आराम नहीं कर सकते। यह सारे दिन का काम होता है और अंधेरा होने से पहले काम पूरा करना ज़रूरी है। अतः थकान दूर करने या सुस्ताने के लिए गीत बदल दिया जाता है। तब ‛हां लाम्बू लोहरा’ गीत गाते हैं। इसमें जब दो व्यक्ति एक पंक्ति बोलते हैं तो शेष लोग पूरी पंक्ति दोहराते हैं, और पद के अन्त में शहतीर आदि खींचते हैं। ‛लाम्बू लोहरा’ शब्दों का अर्थ स्पष्ट नहीं है। परन्तु इसे ‛लटकाना’, ‛लमकाना’, ‛देर करना’, आदि अर्थों में जाना जाता है। दीर्घ-सूत्री के भाव में यह शब्द लोकोक्ति के रूप में प्रयुक्त होता है। खींचने में सुविधा के लिए दो व्यक्ति निर्देशन-संकेत भी देते हैं।

पिछले गीत ‛हेसरू बोला हे सार’ में आदमी जल्दी ही थक जाते हैं। कारण यह है कि ‛हे सार’ शब्द शीघ्र-शीघ्र आता है और लोगों को शहतीर जल्दी-जल्दी खींचना पड़ता है। पिछले गीत की पंक्तियों में जहां-जहां अर्ध-विराम है वहां ‛हे सार’ शब्द कहा जाएगा और खींचा जाएगा। लिखते हुए स्थान को कम करने के लिए ऐसा नहीं दिखाया गया है परन्तु थकने पर बैठ कर आराम नहीं कर सकते। यह सारे दिन का काम होता है और अंधेरा होने से पहले काम पूरा करना ज़रूरी है। अतः थकान दूर करने या सुस्ताने के लिए गीत बदल दिया जाता है। तब ‛हां लाम्बू लोहरा’ गीत गाते हैं। इसमें जब दो व्यक्ति एक पंक्ति बोलते हैं तो शेष लोग पूरी पंक्ति दोहराते हैं, और पद के अन्त में शहतीर आदि खींचते हैं। ‛लाम्बू लोहरा’ शब्दों का अर्थ स्पष्ट नहीं है। परन्तु इसे ‛लटकाना’, ‛लमकाना’, ‛देर करना’, आदि अर्थों में जाना जाता है। दीर्घ-सूत्री के भाव में यह शब्द लोकोक्ति के रूप में प्रयुक्त होता है। खींचने में सुविधा के लिए दो व्यक्ति निर्देशन-संकेत भी देते हैं।

दो व्यक्ति – हां लाम्बू लोहरा
सभी – हां लाम्बू लोहरा

दो व्यक्ति – बूटी पोई गोहरा
सभी – बूटी पोई गोहरा

चेका हुआ दोहरा, चेका हुआ दोहरा
सीधा केरा मोहरा, सीधा केरा मोहरा

रौशा केरा कोहरा, रौशा केरा कोहरा
भांडा पोऊ च़ाहड़ा, भांडा पोऊ च़ाहड़ा

खोंज़ा ड़े कराड़ा, खोंज़ा ड़े कराहड़ा
घौरा रौहू चनाहड़ा, घौरा रौहू बनाहड़ा

बौता पोऊ टोहरा, बौता पोऊ टोहरा
देऊ फिरू समोहरा, देऊ फिरू समोहरा

बड़िऐ झ़लौहरा, बड़िऐ झ़लौहरा
दिहाड़ी दपौहरा, दिहाड़ी दपौहरा

कैण्डी खोंज़ी टौहरा, केण्डी खोंज़ी टौहरा
कुणी पाणा पौहरा, कुणी पाणा पौहरा

जांके जेल्हे सौहरा, जांके जेल्हे सौहरा
तकड़े यार गौहरा, तकड़े यार गाैहरा

च़ौका ड़े फलौहरा, चौका ड़े फलौहरा
देऊआ रा फलौहरा, देऊआ रा फलौहरा।

हिन्दी अनुवाद

दो व्यक्ति – हां लाम्बू लोहरा
सभी – हां लाम्बू लोहरा

दो व्यक्ति – वृक्ष पड़ा रास्ते में
सभी – वृक्ष पड़ा रास्ते में

कमर हो गई दोहरी
सीधा करो मोहरा (शहतीर का अग्र भाग)

रस्से को करो इकहरा,
शहतीर पड़ गया चट्टान पर

निकालो अरे कुल्हाड़ा
घर में रह गया बढ़ई
बैठा है बुनतर

रास्ते में पड़ गया गढा
देवता अनुकूल हो गया

बड़ी ही आकांक्षा है
दिन दोपहरे

कैसी निकाली ठाठ
कौन करे पहरा

सुस्त लोग शहर में (रहते हैं)
तगड़े लोग गांव में

उठाओ अरे ध्वजा
देवता की ध्वजा

संग्रहण व अनुवाद: बलदेव ठाकुर


घुघती (घुग्घी)

यह भी श्रम गीत है। परंतु वास्तव में यह श्रम नृत्य-गीत है। इस में गाते भी हैं और नाचते भी। ढोल, नगारा, शहनाई बज रही होती है। दो व्यक्ति घूघती के बोल कहते हैं। शेष सभी लोग दो बार घू… घ… ती, घू… घ… ती कहते जाते हैं, और दोनों बार रस्सा खींचते हैं। अर्थात दो बार एक साथ ‛घुघती’ शब्द के साथ रस्सा खींचते हैं। सभी खींचने वाले दो भागों में बंट जाते हैं, अर्थात 1, 3, 5, 7, 9 आदि एक टोली और 2, 4, 6, 8, 10 आदि दूसरी टोली। जब बोल बोलने वाले दो व्यक्ति बाजे के साथ गीत के टप्पे गाते हैं तो एक बार पहली टोली के सभी लोग हाथ से रस्सा छोड़ देते हैं। हवा में दोनो हाथ नाचते हुए फैलाते हैं और नाचते हुए अपने आप एक चक्कर मार कर ‛घुघती’ शब्द के पहुंचने तक रस्सा पकड़ते हैं और शेष सबके साथ उसे खींचते हैं। दो बार साथ-साथ ‛घुघती’ शब्द सहित। दूसरे पद बोलने पर दूसरी टोली ठीक वैसा ही नाचती है। ‛घुघती’ का अर्थ घुग्घी पक्षी है। यह पक्षी चहचहाते हुए शरीर हिलाती है जैसे नाच रही हो।

घुघती (घुग्घी) पक्षी
दो व्यक्ति – घू भाइयों घूघती
सभी – घूघती, घूघती

दो व्यक्ति – घूघती न्हौठी मांडी सराज़ा
सभी – घूघती, घूघती

दो व्यक्ति – तौखा न आणू सकेतड़ बाज़ा
सभी – घूघती, घूघती

घू भाइयों घूघती
तौखा न आणू सकेतड़ बाज़ा
घूघती, घूघती

तेबे भीरी सो चुड़चड़ांदी
उडिया न्हौठी बाज़ा बज़ान्दी
घूघती घूघती

सो पुहती पिती रे काज़ा
सुरा थी पिंदा तौखा रा राज़ा
घूघती घूघती

घूघती बेठी च़ाकटी पिंदी
छ़िड़ी मूले ता च़ाकटी सिंधी
घूघती घूघती

भाइड़ भौरे घूघू पाज़ा
तौखा-न आणू लाहुली बाज़ा
घूघती घूघती

घू भाइयो घूघती
तौखा-न आणू लाहुली बाज़ा
घूघती घूघती

शूणा ड़े यारो घूघती घूरा
घौरा पुहती मारदी ठौरा
घूघती घूघती

घौरा थी लागा शौइरी साज़ा
खांदे पिंदे बाज़ा-गाज़ा
घूघती घूघती

रोटी बौड़े च़ाकटी सूरा
साज़ा थी ए की व्याह थी पूरा
घूघती घूघती

सौरा शराब मौज़ा बोड़ी
पटिकदे नौचदे चेकड़ी चोड़ी
घूघती घूघती

ढलकी केरदे बोंडदे जूबा
भेड़ मुनी न काटदे रूभा
घूघती घूघती

नौच़दे कोई ढिसिदे होरा
गुआंदे बोहू ता खांदे थोड़ा
घूघती घूघती

पाहुणे भौरी मिळदे गौळा
लालड़ी लागी ग्राआं रे खोळा
घूघती घूघती

घू भाइयो घूघती
गेहूं री धाणा चूगती
घूघती घूघती

घुघती-बे हुई जूगती
सो खोड़े रे पाण्हे ऊकती
घूघती घूघती

चूटी पाण्हटी सो खुड़कदी
घुघती हुई सो फुरकदी
घू भाइयो घूघती

हिन्दी अनुवाद

दो व्यक्ति – घू भाइयो घूघती
सभी – घूघती, घूघती

दो व्यक्ति – घुग्घी गई मण्डी सराज
सभी – घूघती, घूघती

दो व्यक्ति – वहां से लाया सकेतड़ (सुकेत का) बाजा
सभी – घूघती घूघती

घू भाइयो घूघती
वहां से लाया सकेतड़ बाजा
घूघती घूघती

तब फिर वह चहचहाती
उठ कर गई बाजा बजाती हुई
घूघती घूघती

वह पहुंची स्पिति के काज़ा (राजधानी) में
देशी शराब पी रहा था वहां का राजा
घूघती घूघती

घुग्घी बैठ गई चाकटी (चावल की शराब) पीने
(वहां) लकड़ी मूल्य पर और चाकटी मुफ्त थी
घूघती घूघती

धर्म भाई बनाए कबूतर (और) बाज़
वहां से लाया लाहुली बाजा
घूघती घूघती

घू भाइयो घूघती
वहां से लाया लाहुली बाजा
घूघती घूघती

सुना अरे यारो घूघती घूरा (ध्वनि)
घर में पहुँची मारती हुई दौड़
घूघती घूघती

घर में था लगा सैरी संक्रांत (आश्विन के पहले दिन का त्यौहार)
खा रहे थे, पी रहे थे, बाजा-गाजा (बजा रहे थे)
घूघती घूघती

रोटियां, बड़े (खाने के) चाकटी, सूर (मंडुआ की देशी शराब)
त्यौहार था यह या कि विवाह था पूरा
घूघती घूघती

सौरा (देशी शराब) शराब (सब कुछ) मौज (थी) बड़ी
उछलते, नाचते कमर तोड़ (रहे थे)
घूघती घूघती

प्रणाम करते, बांट रहे थे दूब (उस त्यौहार की विशेष नीति)
भेड़ों की ऊन कटाई (के अवसर) पर काटे जा रहे थे मेढे
घूघती घूघती

नाच रहे थे कोई, लड़ रहे थे दूसरे
खो रहे थे अधिक खा रहे थे कम
घूघती घूघती

महमान बहुत मिल रहे थे गले
लालड़ी (एक नृत्य गीत) लगी थी गांव के खलिहान में
घूघती घूघती

घू भाइयों घूघती
गेहूँ के धाणा (भूने हुए दाने) चुग रही थी
घूघती घूघती

घुग्घी को हुई बड़ी मौज
वह अखरोट के टहने पर चढ़ गई
घूघती घूघती

टूट गई टहनी वही, कड़क करती हुई
घुग्घी के हुए प्राण पखेरू
घू भाइयों घूघती

संग्रहण व अनुवाद: बलदेव ठाकुर


झीऊंच़ळीए

यह भी नृत्य श्रम गीत है। यह घूघती से अधिक विलम्बित ताल का गाना है। नाचते हुए मुख्य अन्तर यह है कि जहां घूघती घूघती स्वर कहते हुए रस्सा एक बार खींचा जाता है, वहां इस गीत में झीऊंच़ळीए-झीऊंच़ळीए दो बार बोल बोले जाते हैं तथा रस्सा भी दो बार खींचा जाता है। एक बार ज़ोर धीरे से लगाया जाता है, मानो दूसरी बार ज़ोर लगाने की तैयारी का संकेत है। दूसरी बार पूरी शक्ति से रस्सा खींचा जाता है । यह गीत प्राय: ऐसे रास्ते से अधिक गाया जाता है जहां ऊपर को खींचा जाना हो अर्थात जहां रास्ता समतल और ढलानदार न हो बल्कि चढ़ाई वाला मार्ग हो, जहां भार को खींचने के लिए अधिक बल अपेक्षित होता है।

दो व्यक्ति – झीऊंच़ळीए, झीऊंच़ळीए
सभी – झीऊंच़ळीए, झीऊंच़ळीए

दो व्यक्ति – च़ौले उठिया कुळू बे जाणा
सभी – झीऊंच़ळीए, झीऊंच़ळीए

कुळू जाइया की नौउंच़ा खाणा
झीऊं० ...

कुळू जाइया घिऊ-खिच़ड़ू खाणा
झीऊं० ...

घिऊ-खिच़ड़ू नी गौळा न जाणा
झीऊं० ...

गौळा तेरे मूं ता घुंघरू लाणा
झीऊं० ...

कुळू देशा सा पौटू रा बाणा
झीऊं० ...

गौळा घुंघरू पौटू बी लाणा
झीऊं० ...

डैंगा थिपू ज़ौंघा बुटड़ू लाणा
झीऊं० ...

थिपू पौटू की पलवा पाणा
झीऊं० ...

कुळू जाइया मूं शाहुरा लाणा
झीऊं० ...

तेरे शाहुरे की सेलरा लाणा
झीऊं० ...

ऐज़े दूईए घौर बसाणा
झीऊं० ...

नूआं घौर चूटा फूटा पराणा
झीऊं० ...

तेरी तेइएं चूटा फूटा सज़ाणा
झीऊं० ...

घौरा नाइएं पूछ़ू सियाणा
झीऊं० ...

कोने शुणू नाई लेखा न पाणा
झीऊं० ...

मशेरणा नाईं कदी सियाणा
झीऊं० ...

याणा नाईं ए लोभा न लाणा
झीऊं० ...

एज़े मांदी आसा हौथ मलाणा
झीऊं० ...

जुगा ज़ानी बे संग बणाणा
झीऊंच़ळीए, झीऊंच़ळीए

हिन्दी अनुवाद

दो व्यक्ति – झीऊंच़ळीए झीऊंच़ळीए (एक पक्षी का नाम)
सभी – झीऊंच़ळीए झीऊंच़ळीए

दो – चल उठ कर कुल्लू को जाएं
सभी – झीऊंच़ळीए झीऊंच़ळीए

कुल्लू जाकर क्या नया खाना है

कुल्लू जाकर घी खिचड़ी खाना है

घी खिचड़ी नहीं गले में जाएगी

गले में तेरे मैं तो घुंघरू-माला पहनाऊंगा

कुल्लू देश में पट्टू का रिवाज़ है

गले में घुंघरू (और) पट्टू, भी पहनाएंगे

टेढ़ा थिपू ( सिर का रूमाल) पैर में बूट लगाएंगे

थिपू (और) पट्टू, क्‍या कुछ कर सकेंगे

कुल्लू जाकर मैं ससुराल बनाऊंगी

तेरे ससुराल में क्या सेलरा (चिपकने वाला बिरोज़ा) लगेगा

आ दोनों घर बसा लें

नया घर टूटा फूटा पुराना

तेरे लिए टूटा फूटा सजाएंगे

घर में नहीं पूछा सियाना (बुजुर्ग)

कान में सुना नहीं लेखे में लाया जाए

गुस्सा नहीं कभी सियाने (को) दिलाना

छोटे को नहों लोभ (मोह) में लगाना

आ भलिए हम हाथ मिलाएं

युग (और) जीवन के लिए संघ बनाएं
झीऊंच़ळीए झीऊंच़ळीए

संग्रहण व अनुवाद: बलदेव ठाकुर


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